Friday 12 October 2012

अशुभ /प्रतिकूल फल का निर्णय एवं विरोधी भाव








 अशुभ /प्रतिकूल फल  का निर्णय  एवं  विरोधी भाव ---

हमारे जीवन में घटित  अनुकूलता या प्रतिकूलता /सफलता या सफलता  आदि पूर्व जन्मों के संचित प्रारब्ध  के अनुसार चलता है |जीवन में सदा हमारी  अपेक्षा के अनुरूप ही हो संभव नहीं है , कई बार अनुकूल सफलता  मिलने  पर भी हम आनंदित नहीं  रह  पाते है |
जीवन होने वाली घटना से सुख या प्रफुल्लता मिलेगी या  नहीं का  विचार कुंडली के  अष्टम और द्वादश  भाव से किया जाता है  क्योकि  अष्टम व् द्वादश दुःख या प्रतिकूलता/ अशुभता   देने वाले भाव होते है अतः  -घटना से जुड़े  प्रमुख  एवं  सहायक भावो के  कारक ग्रह यदि  द्वादश या  अष्टम  भाव के  कारक  हों तो होने वाली घटना से जातक को निराशा या प्रतिकूलता होती है |
 विवाह के लिए  सातवाँ प्रमुख  भाव  है  तो छठा ,सातवें  से १२वा भाव  होगा  याने ७वे भाव के फलो में  अशुभता होगी | वैसे ही ग्यारहवे  भावे से  दसवा १२ वा होगा /लग्न  दुसरे भावे से  १२ वा होने से वैवाहिक जीवन में समस्या उत्पन्न  करेगा | किस रूप में कैसे करेंगे आगे  बतलायेंगे |
 सप्तम भाव से १२ वा भाव ६ठा भाव  सप्तम के  शुभ  फलो में प्रतिकूलता या निराशा  होगी | वैसे ही पंचम से १२ वा चौथा भाव संतान सुख में निराशा देगा  अर्थात  या तो घटना नहीं होने देगा या उससे सुख नहीं
मिलेगा |
इसी प्रकार नौकरी के विषय में नियम होगा की षष्ठ भाव का सब लोर्ड या उप नक्षत्र  स्वामी - २ ,६ ,१० ११ वे भाव का कारक या सिग्निफिकैटर बन जाये  तो नौकरी मिल जाएगी परन्तु  यदि वो ही सब लोर्ड १,५,८,९ १२ भावो का कारक भी हो तो नौकरी में अस्थिरता ,अधिकारीयों से नह बन पाना  नौकरी से निकाल दिया जाना ,पदोन्नति में रूकावट जैसी समस्याओ का सामना पड़ता है | क्योंकि
५वा भाव ६ठे से १२ वा है |
अष्ठम भाव लग्न से ८ वा है |
९ वा भाव २ रे से ८ वा है |
१२ वा लग्न से १२ वा है |
अतः ८ वा या १२ वा भाव मुख्य कारको के फलो में प्रतिकूलता लाते है |
अतः  फलादेश करने के लिए घटना के  प्रमुख /सहयोगी भावो  के विरोधी भावो का विचार करके ही निर्णय  लिया जाना चाहिए |


सप्तम भाव से १२ वा भाव ६ ठा   भाव  सप्तम के  शुभ  फलो में प्रतिकूलता या निराशा  होगी | वैसे ही पंचम से १२ वा चौथा भाव  संतान सुख में निराशा देगा  अर्थात  या तो घटना नहीं होने देगा या उससे सुख नहीं
मिलेगा |
इसी प्रकार नौकरी के विषय में नियम होगा की षष्ठ भाव का सब लोर्ड या उप नक्षत्र  स्वामी - २ ,६ ,१० ११ वे भाव का कारक या सिग्निफिकैटर बन जाये  तो नौकरी मिल जाएगी परन्तु  यदि वो ही सब लोर्ड १,५,८,९ १२ भावो का कारक भी हो तो नौकरी में अस्थिरता ,अधिकारीयों से नह बन पाना  नौकरी से निकाल दिया जाना ,पदोन्नति में रूकावट जैसी समस्याओ का सामना पड़ता है |
 अतः  फलादेश करने के लिए घटना के  प्रमुख /सहयोगी भावो  के विरोधी भावो का विचार करके ही निर्णय  लिया जाना चाहिए |

Wednesday 10 October 2012

के.पी में फलादेश के निर्णय हेतु मुख्य एवं सहयोगी भाव

 के.पी में फलादेश  के निर्णय हेतु  मुख्य एवं सहयोगी भावों को मिलाकर फल कथन की एक मौलिक प्रणाली है |

मुख्य भाव -जैसे  द्वितीय भाव -धन ,त्रतीय भाव -लेखन ,चतुर्थ  भाव-  माता  या शिक्षा,षष्ठ भाव -नौकरी ,सप्तम भाव -विवाह  आदि से हम इनके विषय में सामान्य तौर से विचार करते हैं |
सहायक भाव -किसी घटना के होने से जीवन के अन्य पक्षों में  होने वाले प्रभावों से जुड़े भावों भावों को जोड़ा जाता है . जैसे हम  विवाह के बारे में सोंचें  तो विवाह  के लिए सप्तम स्थान का विचार किया जाता है | विवाह के बाद परिवार में एक व्यक्ति बढ़ जाता है  अतः  द्वितीय भाव एक सहायक स्थान है , साथ ही  एक मित्र/ दुःख सुख में साथ देने वाला और सच्चे मन से चाहने वाला प्राणी पातें  हैं इसलिए एकादश भाव दूसरा सहायक स्थान है | अतः विवाह के लिए सातवे प्रमुख भाव के साथ दुसरे  एवं ग्यारहवें भाव को सहायक भावों को लिया जाता है |
इसी प्रकार संतान  के लिए पंचम प्रमुख भाव है ,संतान होने के बाद परिवार में वृद्धि  होती है इसलिए दूसरा भाव ,संतान होने से इच्छा पूरी होती है  अतः लाभ (एकादश )भाव सहायक भाव होते हैं |

इसी प्रकार नौकरी के लिए छठा भाव देखते है  क्योंकि  छठा -सेवा है ,जहाँ नौकरी की जाती है, वह सातवे भाव से देखा जाता है और छठा भाव सातवे के  लिए व्यय स्थान होता है | धन के रूप में जो हमें दिया जाता है  वह हमारी आय होती है | वह दुसरे भाव से ,धन कमाने व् नौकरी करने से जो सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है  अतः दशम भाव साथ ही  मित्रता मनोकामना अवं धन लाभ के कारण लाभ  (ग्यारहवा) स्थान सहायक होता  है इसलिए  नौकरी के विषय में हमेशा  छठे भाव के साथ ,दुसरे दसवे एवं ग्यारहवे  भाव को देखकर ही निर्णय लिया जाता है |

 अब कैसे फलादेश में उपयोग किया जाता है -
 प्रत्येक भाव का उपनक्षत्र स्वामी (सब लोर्ड ) उस भाव के फलो का निर्णायक है कि  फल मिलेंगे या नहीं मिलेंगे ,और मिलने  वाले फल अनुकूल या प्रतिकूल होंगे ?
 सबसे पहले संभावित घटना के प्रमुख  एवं सहायक भावों का चयन  करे |
अब देखे की संभावित घटना के प्रमुख भाव  का सब लोर्ड -उस प्रमुख भाव  का या अन्य सहयोगी भावो में से किसी एक भाव का कारक हो तो घटना संभव है |