Saturday 15 December 2012

मुहूर्त








 मुहूर्त 

मुहूर्त अथवा अनुकूल एवं   शुभ समय का चयन ज्योतिष शास्त्र की एक अलग शाखा है | हमारे जीवन के सभी संस्कार  एवं धार्मिक आयोजन मुहूर्त के अनुसार सम्पन्न किये जाते है |
इन मुहूर्तों  का  चयन  पचांग के आधार पर किया जाता है |
 पंचाग के पांच अंग हैं -१ नक्षत्र , २ योग ,३ तिथि , ४ करण , ५ दिन  |
 इन मुहर्तों का चयन जातक की जन्म कुंडली  की सहायता से किया जा सकता  है , और जिनके के पास  जन्म कुंडली नहीं है  वे सर्व  सामान्य मुहूर्त  या प्रश्न कुंडली का उपयोग कर सकते हैं |भारतीय पंचांगों  में सर्व सामान्य मुहूर्त देये रहते हैं  जिनका उपयोग कोई भी व्यक्ति अपनी सामाजिक रीती रिवाज के अनुसार इनका चयन कर सकता है |
 के .पी  में  उद्देश्य के कारक ग्रहों के अनुसार दशा नाथ के गोचर ,सूर्य चन्द्र  एवं कारक ग्रहों से लग्न निर्धारित करके देखा जाता है | अनुकूल समय चयन  का कम से एक मिनिट तक संभव है |

के .पी. में किसी घटना विशेष के हेतु आर .पी. के चयन के लिए आवश्यक सूत्र








  दशा - किसी भी घटना के समय निर्धारण  के लिए केवल विंशोत्तरी दशा का ही  उपयोग  किया जाता है |
  गोचर - इस पद्धति में  सभी ग्रहों के गोचर का अध्ययन उनके नक्षत्र  स्वामी  और उप नक्षत्र  की स्थिति के आधार पर किया जाता है | गोचर का विचार  केवल  लग्न से ही किया जाता है | साढ़ेसाती,गुरु बल  अष्टम  चन्द्र  आदि का अनुसरण नहीं किया जाता है |
 योग - इस पद्धति में  केवल पुनर्भू योग ही होता है ,यह योग  चन्द्र और शनि के सम्बन्ध - राशी से / युति /दृष्टि  या नक्षत्र  या उप नक्षत्र  द्वारा होता है |

के .पी . में किसी भी वर्ग कुंडली नवमांश  सप्तमांश  त्रिशांश आदि  का उपयोग  नहीं किया जाता है |
 प्रश्न -कुंडली  इस पद्धति  में  १ से २४९ के बीच में से पूछे गए अंक के आधार पर प्रश्न कुंडली बनाई जाती है  और तात्कालिक ग्रहों के द्वारा घटना के लिए अनुकूलता या प्रतिकूलता  के साथ समय उसका समय निर्धारण किया जाता है|

के .पी. में  किसी घटना विशेष के  हेतु  आर .पी. के चयन के लिए आवश्यक सूत्र --
 आर पी ग्रहों में किसी भी ग्रह का सम्बन्ध यदि राहु या केतु से हो जाता है  तो उसका स्थान राहु या केतु को दिया जा सकता है |
  १) ऐसे ग्रह को प्राथमिकता  देवें  जो आर पी होने के साथ ही साथ प्रश्न से सम्बंधित प्रमुख एवं सहायक                         भावों का भी कारक भी  हो  |
  २) कोई ग्रह यदि वक्री  हो तो वह अपने वक्रत्व कल में फल नहीं दे पाता ,मार्गी होने पर जिस अंश से वक्री हुआ था उस अंश से आगे बढने  के बाद ही फल दे पाता है |
  ३) यदि किसी ग्रह का नक्षत्र  स्वामी वक्री हो तो आर पी में निरस्त करें |
  ४) यदि किसी ग्रह का उप  नक्षत्र  स्वामी वक्री होतो और वह ग्रह भावे का कारक भी हो  तो उसके मार्गी          होने के आर पी के लिया जा सकता है |
  ५) यदि किसी ग्रह ग्रह के नक्षत्र  स्वामी एवं उप नक्षत्र दोनों ही वक्री हो तो  उसे आर पी से हटायें |


दशा--  फल --  निर्णय

 के . पी. में  केवल  विमशोत्तरी  दशा का ही उपयोग  होता है  | दशा फल के निर्णय हेतु  हमें निम्नलिखित  बिन्दुओं  को ध्यान में रखना  चाहिए --
१) जन्म कुंडली  के ग्रहों के बलाबल पर दशाओं  का फल निर्भर रहता  है |
२) जन्म कुंडली  में दर्शाए  गए फल   के  विपरीत फल कोई  भी दशा नाथ  नहीं दे सकता  |
३) दशा   फल का  आकलन  जातक की  आयु , देश -काल और पात्र आदि के अनुसार किया जाना चाहिए
४) दशा नाथ  नीचे लिखे अनुसार  फल दे सकता है --
 १--अपने नक्षत्र स्वामी का फल दे सकता है |
 २--स्वयं का फल दे सकता है |
 ३--अपने नैसर्गिक कारकत्व  के अनुसार फल दे सकता है |
 ४--के पी में आधारित भावो के स्वामियों के अनुसार फल दे सकता है |

५--दशानाथ के फलों पर दृष्टि कर्त्ता  ग्रहों ,उनके कारकत्व , स्थिति एवं स्वामित्त्व  के अनुसार प्रभाव पड़ता है |
६ --जिन भावों और ग्रहों पर दशानाथ की दृष्टि है उनके फल दे सकता है |
७ --अन्तर नाथ  एवं प्रत्यन्तेर नाथ  भी अपेक्षित फल से जुड़े भाव समूहसे सम्बंधित होना चाहिए |
 उदहारण -- संतान प्राप्ति के लिए  २ , ५  और ११   वें  से विचार किया जाता है , तो दशानाथ  २ , ५ , या ११  वें भाव का कारक या सिगानिफिकैटर  होना चाहिए  और  भुक्तिनाथ भी  इन तीनो भावों का  या इन  तीनों में से किसी भी एक  या दो  भावों का कारक होना चाहिए |

८-- अनुकूल फल प्राप्ति के लिए  दशानाथ और भुक्तिनाथ  परस्पर  छठे , आठवें  या  बारहवें  भाव में  नहीं होना चाहिए |
९--यदि स्थिर राशी में  या  २,५,८,११ में ग्रह हों या मंद गति के ग्रह  हों तो उसके फल का प्रभाव अधिक  समय तक रहता है  चाहे वह अनुकूल  या प्रतिकूल  हो|  जबकि केंद्र में  या चर राशी में  शीघ्र गति  वाला ग्रह  हो तो उसका  फल अल्पकालीन  और शीघ्र  होता है |
१०--दशानाथ यदि लग्न से जुड़ा हो तो उस दशा में जातक की सक्रियता अधिक होती है |             
११-- दशाओं के शुभ  या अशुभ फल ग्रहों की कुंडली में  पर निर्भर है न की उनके नैसर्गिक स्वभाव पर 
१२-- ग्रहों के अनुकूल  गोचर |पर ही दशानाथ भुक्तिनाथ फल प्रदान कर सकते हैं |




Sunday 4 November 2012

राहु और केतु









 राहु और केतु  --राहु व केतु छाया ग्रह होने से इनकी राशियाँ निर्धारित नहीं की गई है  किन्तु  निम्न भावो  व ग्रहों का प्रतिनिधित्व  करते हैं -
 १) राहु और केतु के साथ बैठने वाले ग्रह   |
 २) राहु    और  केतु पर दृष्टि  डालने वाले ग्रह  |
 ३) राहु  और  केतु  जिस राशी व  नक्षत्र  में हो उनके स्वामी ग्रह |
  
तात्कालिक या  आर .पी. ग्रह ---यह नया सिद्धांत है  जिसका फल कथन या घटना के समय निर्धारण में    
बहुलता से प्रयोग किया जाता है |  ये निम्न लिखित है --
 १)लग्न नक्षत्र का स्वामी 
 २ )लग्न राशी का स्वामी 
 ३) चन्द्र नक्षत्र  का स्वामी
 ४ )चन्द्र राशी  का स्वामी 
 ५ )सप्ताह के दिन का स्वामी
  इसके अलावा लग्न में स्थित  ग्रह या लग्न या चन्द्र  अवं अन्य आर .पी  ग्रहों को देखने वाले ग्रहों को भी लिया जाता है |

कारक ग्रह- के पी में प्रत्येक भाव के कारक







कारक ग्रह- के पी  में  प्रत्येक  भाव के कारक (निर्देशक ) या सिग्निफी केटर्स के चयन के लिए  नीचे लिखे क्रम को अपनाया जाता है ;-

१) भावस्थ  ग्रह के नक्षत्र में स्थित ग्रह  |
 २)भाव में   स्थित |
 ३) भावेश के नक्षत्र में स्थित ग्रह |
 ४)भावेश |
 ५)उपरोक्त  कारक ग्रहों को देखने वाले ग्रह |
 ६) भाव को देखने वाले ग्रह |

कुछ घटनाओ के प्रमुख भाव/सहयोगी भावो के साथ विरोधी या प्रतिकूल भावों की जानकारी


कुछ  घटनाओ  के प्रमुख भाव/सहयोगी  भावो के साथ विरोधी या प्रतिकूल भावों की जानकारी नीचे दी जा रही है ---

घटना                   प्रमुख भाव  एवं      सहायक भाव                                    विरोधी  भाव
विवाह                            ७          २          ११                                              ६    १   १०   १२   ८
संतान                            ५          २          ११                                              ४    १   १०   ८    १२  
नौकरी                            ६           १०        २      ११                                      १    ५   ९    ८    १२
स्थानान्तेर                      १०         ३         १२                                              ४    ८
पदोन्नति                        १०         ६          २      ११                                      ९    ५   ८   १२
शिक्षा                              ४          ९          ११                                               ३   ५   ८   १२
छात्र वृत्ति                         ६          ९          ११                                               ५   ८   १२
वाहन का क्रय                  ४          ११        १२                                               ३   ८
घर का क्रय                      ४          ११        १२                                               ३   ८
घर का विक्रय                 १०         ५         ६                                                 ४  ११   ८   १२
ऋण प्राप्ति                        ६           ११                                                           ५  १२
ऋण मुक्ति                       १२         ८                                                            ६   ११      
विदेश गमन                    १२        ३         ९                                                 २    ४   ११
लोटरी                             ३          ६         २       ११                                      १     ५   ८    ९   ११
न्यायालीन प्रकरण          ६          १०       ११                                               ५     ९   ८    १२
प्रेम  विवाह                     ५          २        ११                                               ४     १०  १
दीर्घायु                            १           ८         ३                                                २     ७   १२  बाधक भाव
स्वास्थ्य                         १                                                                        ६      ८   १२                                                                                                  

Friday 12 October 2012

अशुभ /प्रतिकूल फल का निर्णय एवं विरोधी भाव








 अशुभ /प्रतिकूल फल  का निर्णय  एवं  विरोधी भाव ---

हमारे जीवन में घटित  अनुकूलता या प्रतिकूलता /सफलता या सफलता  आदि पूर्व जन्मों के संचित प्रारब्ध  के अनुसार चलता है |जीवन में सदा हमारी  अपेक्षा के अनुरूप ही हो संभव नहीं है , कई बार अनुकूल सफलता  मिलने  पर भी हम आनंदित नहीं  रह  पाते है |
जीवन होने वाली घटना से सुख या प्रफुल्लता मिलेगी या  नहीं का  विचार कुंडली के  अष्टम और द्वादश  भाव से किया जाता है  क्योकि  अष्टम व् द्वादश दुःख या प्रतिकूलता/ अशुभता   देने वाले भाव होते है अतः  -घटना से जुड़े  प्रमुख  एवं  सहायक भावो के  कारक ग्रह यदि  द्वादश या  अष्टम  भाव के  कारक  हों तो होने वाली घटना से जातक को निराशा या प्रतिकूलता होती है |
 विवाह के लिए  सातवाँ प्रमुख  भाव  है  तो छठा ,सातवें  से १२वा भाव  होगा  याने ७वे भाव के फलो में  अशुभता होगी | वैसे ही ग्यारहवे  भावे से  दसवा १२ वा होगा /लग्न  दुसरे भावे से  १२ वा होने से वैवाहिक जीवन में समस्या उत्पन्न  करेगा | किस रूप में कैसे करेंगे आगे  बतलायेंगे |
 सप्तम भाव से १२ वा भाव ६ठा भाव  सप्तम के  शुभ  फलो में प्रतिकूलता या निराशा  होगी | वैसे ही पंचम से १२ वा चौथा भाव संतान सुख में निराशा देगा  अर्थात  या तो घटना नहीं होने देगा या उससे सुख नहीं
मिलेगा |
इसी प्रकार नौकरी के विषय में नियम होगा की षष्ठ भाव का सब लोर्ड या उप नक्षत्र  स्वामी - २ ,६ ,१० ११ वे भाव का कारक या सिग्निफिकैटर बन जाये  तो नौकरी मिल जाएगी परन्तु  यदि वो ही सब लोर्ड १,५,८,९ १२ भावो का कारक भी हो तो नौकरी में अस्थिरता ,अधिकारीयों से नह बन पाना  नौकरी से निकाल दिया जाना ,पदोन्नति में रूकावट जैसी समस्याओ का सामना पड़ता है | क्योंकि
५वा भाव ६ठे से १२ वा है |
अष्ठम भाव लग्न से ८ वा है |
९ वा भाव २ रे से ८ वा है |
१२ वा लग्न से १२ वा है |
अतः ८ वा या १२ वा भाव मुख्य कारको के फलो में प्रतिकूलता लाते है |
अतः  फलादेश करने के लिए घटना के  प्रमुख /सहयोगी भावो  के विरोधी भावो का विचार करके ही निर्णय  लिया जाना चाहिए |


सप्तम भाव से १२ वा भाव ६ ठा   भाव  सप्तम के  शुभ  फलो में प्रतिकूलता या निराशा  होगी | वैसे ही पंचम से १२ वा चौथा भाव  संतान सुख में निराशा देगा  अर्थात  या तो घटना नहीं होने देगा या उससे सुख नहीं
मिलेगा |
इसी प्रकार नौकरी के विषय में नियम होगा की षष्ठ भाव का सब लोर्ड या उप नक्षत्र  स्वामी - २ ,६ ,१० ११ वे भाव का कारक या सिग्निफिकैटर बन जाये  तो नौकरी मिल जाएगी परन्तु  यदि वो ही सब लोर्ड १,५,८,९ १२ भावो का कारक भी हो तो नौकरी में अस्थिरता ,अधिकारीयों से नह बन पाना  नौकरी से निकाल दिया जाना ,पदोन्नति में रूकावट जैसी समस्याओ का सामना पड़ता है |
 अतः  फलादेश करने के लिए घटना के  प्रमुख /सहयोगी भावो  के विरोधी भावो का विचार करके ही निर्णय  लिया जाना चाहिए |

Wednesday 10 October 2012

के.पी में फलादेश के निर्णय हेतु मुख्य एवं सहयोगी भाव

 के.पी में फलादेश  के निर्णय हेतु  मुख्य एवं सहयोगी भावों को मिलाकर फल कथन की एक मौलिक प्रणाली है |

मुख्य भाव -जैसे  द्वितीय भाव -धन ,त्रतीय भाव -लेखन ,चतुर्थ  भाव-  माता  या शिक्षा,षष्ठ भाव -नौकरी ,सप्तम भाव -विवाह  आदि से हम इनके विषय में सामान्य तौर से विचार करते हैं |
सहायक भाव -किसी घटना के होने से जीवन के अन्य पक्षों में  होने वाले प्रभावों से जुड़े भावों भावों को जोड़ा जाता है . जैसे हम  विवाह के बारे में सोंचें  तो विवाह  के लिए सप्तम स्थान का विचार किया जाता है | विवाह के बाद परिवार में एक व्यक्ति बढ़ जाता है  अतः  द्वितीय भाव एक सहायक स्थान है , साथ ही  एक मित्र/ दुःख सुख में साथ देने वाला और सच्चे मन से चाहने वाला प्राणी पातें  हैं इसलिए एकादश भाव दूसरा सहायक स्थान है | अतः विवाह के लिए सातवे प्रमुख भाव के साथ दुसरे  एवं ग्यारहवें भाव को सहायक भावों को लिया जाता है |
इसी प्रकार संतान  के लिए पंचम प्रमुख भाव है ,संतान होने के बाद परिवार में वृद्धि  होती है इसलिए दूसरा भाव ,संतान होने से इच्छा पूरी होती है  अतः लाभ (एकादश )भाव सहायक भाव होते हैं |

इसी प्रकार नौकरी के लिए छठा भाव देखते है  क्योंकि  छठा -सेवा है ,जहाँ नौकरी की जाती है, वह सातवे भाव से देखा जाता है और छठा भाव सातवे के  लिए व्यय स्थान होता है | धन के रूप में जो हमें दिया जाता है  वह हमारी आय होती है | वह दुसरे भाव से ,धन कमाने व् नौकरी करने से जो सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है  अतः दशम भाव साथ ही  मित्रता मनोकामना अवं धन लाभ के कारण लाभ  (ग्यारहवा) स्थान सहायक होता  है इसलिए  नौकरी के विषय में हमेशा  छठे भाव के साथ ,दुसरे दसवे एवं ग्यारहवे  भाव को देखकर ही निर्णय लिया जाता है |

 अब कैसे फलादेश में उपयोग किया जाता है -
 प्रत्येक भाव का उपनक्षत्र स्वामी (सब लोर्ड ) उस भाव के फलो का निर्णायक है कि  फल मिलेंगे या नहीं मिलेंगे ,और मिलने  वाले फल अनुकूल या प्रतिकूल होंगे ?
 सबसे पहले संभावित घटना के प्रमुख  एवं सहायक भावों का चयन  करे |
अब देखे की संभावित घटना के प्रमुख भाव  का सब लोर्ड -उस प्रमुख भाव  का या अन्य सहयोगी भावो में से किसी एक भाव का कारक हो तो घटना संभव है |

Tuesday 4 September 2012

प्रश्न कुंडली की सहायता से भविष्य कथन में के पी का एक अनुपम योग दान


प्रश्न कुंडली की  सहायता से  भविष्य  कथन में   के पी  का एक अनुपम योग दान-हमारे पारंपरिक ज्योतिषशास्त्र  के अनुसार  यदि किसी  जातक के पास उसकी  जन्म कुंडली हो  या  न हो  अथवा  कई प्रश्न ऐसे होते है  जिनका उत्तर जानने के लिए प्रश्न कुंडली ही जरुरी होती है.जैसे नौकरी कब मिलेगी यह तो जन्म कुंडली से भी बताया जा सकता  है  किन्त्तु  कहाँ मिलेगी ,किस क्षेत्र में मिलेगी ? या जातक के पास दो नौकरी के विकल्प हैं  कहाँ  नौकरी करना बेहतर  होगा ? प्रश्न कुंडली जरुरी हो जाती है. ऐसी परिस्थिति में   और प्रश्न द्वारा जातक को बतलाया जाता है.
 परन्तु  कई बार ऐसा भी होता है की एक जातक के  विवाह कब होगा प्रश्न पूछने  के कुछा समय के  बाद दूसरा व्यक्ति अपने तलाक के बारे में  जानना चाहता  है . इस बीच  न तो ग्रह स्थिति  और न  लग्न की स्थिति  बदलती है . क्या एक ही प्रश्न  कुंडली से विवाह और तलाक के विषय में बतलाना  सही होगा ?
 इस व्यवहारिक समस्या को सुलझाने के लिए  जातक को   १ से २४९  के बीच के अंक को  चुनने के लिए कहा जाता है  और उस अंक से  प्रश्न के  लग्न की राशी ,तथा उसके अंश ,कला ,विकलाका निर्णय  किया जाता है .इस विधि से एक ही समय में अनेक प्रश्नों को सरलता से सुलझाया जा सकता है.
 प्रश्नों का उत्तर देने में तात्कालिक ग्रहों (रूलिंग प्लानेट्स ) का उपयोग किया  जाता है. ये निम्नलिखित हैं -
१- प्रश्न के समय जो लग्न है  उस लग्न का स्वामी ,
 २- लग्न स्वामी का नक्षत्र स्वामी ,
 ३-चन्द्र जिस राशी में है -उस राशी का स्वामी ,
 ४ - चन्द्र जिस नक्षत्र में है उसका नक्षत्र स्वामी
 ५ -जो वार है  उसका स्वामी
  उपरोक्त इन पांच ग्रहों को  साधारण भाषा में  आर .पी . कहा जाता है.
इन की सहायता से होने वाली घटना का  सही समय /दिनांक निकाला जा सकता  है .
 अपेक्षित घटना कौनसी  दशा /अंतर /प्र्त्यांतेर में होगी .जातक का सही जन्म समय का पता करना आदि अनेक समस्याओं का समाधान सरलता से किया जा सकता है .

Saturday 1 September 2012

Utility of K.P in minor events of daily life

Horary Astrology is used for giving answers to specific questions of a person in the following conditions--
1- In absence of correct birth details of a person.
some times dasa period lord may indicate possibility of -------- 3-divorce or break in business.
 2 - change in proffession or or going to foreign land ,events related to 9th house .
 3 -change
 of residance or loss of property or separation from mother ,events related to 3rd house. 


4-long journey,extra marital relation or higher education/research . 


5-it is used frequently to know arrival of guest or missing who left home without notice of family members. 


6-Taking delivery of a vehicle. 


7-out come prospects of an examination/interview/filing a court case/ to purchase of a vehicle/ to apply for transfer/to sign a contract/to occupy a house/ to approach to the girls parents for acceptance of marriage/to approach the doctor for operation etc.

Monday 27 August 2012

Brief information about myself and krishna murthi paddathi

Myself krishna kant sharma B.E.(Elect) & M.A.(sanskrit) having consolided profound experience in vedic astrology and k.p. astrology from last 40 years stands comfortably sticking & accepting this science as a rewarding hobby with the mission to guide/work in right and appropriate direction to mitigate their personal  sufferings.
This is an excellent system (Paddhati) of astrological predictions conceived, created by The Great Indian Astrology master, late Prof. K.S. Krishnamurti.
As you must have experienced that pin-pointing of the timing of the events is rather difficult (impossible) when one uses Vedic or any other system.
At the same time in cases of Twin Births the charts of then two persons will remain almost same in Vedic system. However there is always a lot of difference in them.
If you want a precise 'YES' or 'NO' answer astrologically then it is also difficult in conventional astrology.
In conventional horary astrology if two or more people approach to you at the same time then it again becomes very difficult to give accurate predictions as their charts will remain the same.
To overcome the above and similar short-comings  of the conventional vedic system, KP comes as saviour.
Major Differences From Vedic :
KP system gives importance to the Constellations / Stars / Nakshatras divisions of the Zodiac which is obviously the most desired for precision.
Further it divides each Constellation / Star / Nakshatra division into further 9 subdivisions called 'SUBS'. These sub divisions are not equal divisions, but are as per the years alloted to the planets in Vimshottari Dasha.
K.P. System uses K.P. Ayanamshas as opposed to Lahiri Ayanamshas mostly used in Vedic System. The difference between two is about 6 minutes (Kala).
This system uses Cusps that is house/ bhav beginnings like Western Systems, as opposed to Vedic System which uses House Centres i.e. Bhav Madhyas.
This system uses Placidus House system.
The planet in it's dasha gives results as per it's Nakshtra-Swami (Star-Lord) rather than the planet itself.
Whether the above results will be benefic or malefic will be decided by the Planet's SUB.
Hence Planet is represents the SOURCE, that Planet's Star-Lord represents the EFFECTS, RESULTS and that Planet's Sub gives idea of good or bad /favourable or unfavourable of that result.
RULING PLANETS : Unique masterpiece  theory of KP for Powerful Divine Guidance during predictions..
Personally i feel that this system is best for accurate timing of events.i love this system and  i am practising from last 40 years it's my sincere suggestion to  try. i am confidant if you try you will love this system and realise that astrology is hunder percent a mathmatical science .
 I am practicing in " Stellar KP System -
- Accuracy in astrology predictions, for specific event and pinpointing the time of event is the main feature of my work of astrology/ horoscope analysis,  Even major events i.e. job, promotion ,  marriage, house purchase/disposal, foreign travel to minor events of day to day life  is easily predictable  by this k.p. Stellar Astrology System. I can predict all about your query, whether they will materialize or not, how & when ? And Suggest the best possible Vedic remedy by Vedic pooja and gem therapy
With this divine astrological science .
- If you agonised over problems of career- business,service transfer  promotion foreign assignment suspension family, marriage ( love or arranged relationship) health and spirituality  etc ,and like to ask an Astrologer,  on mail i can provide you insight and guidance on matters that may have troubled you for years. You can ask about your any problem with foll0wing details -
   your name and sex
    date of birth with  Exact time time of birth
   Place of birth
   In case if you are doubtful about birth details or non availability of birth details
          or
 -  if you want to ask a specific question please give a number in between  1 to 249 with  name of present living place.
   Before cotacting me, it will be better if you e -mail your  birth details or number in between from 1 to 249 for       obtaining astrological prediction  on my mail id ,I shall guide you in your problems.