Saturday 15 December 2012

मुहूर्त








 मुहूर्त 

मुहूर्त अथवा अनुकूल एवं   शुभ समय का चयन ज्योतिष शास्त्र की एक अलग शाखा है | हमारे जीवन के सभी संस्कार  एवं धार्मिक आयोजन मुहूर्त के अनुसार सम्पन्न किये जाते है |
इन मुहूर्तों  का  चयन  पचांग के आधार पर किया जाता है |
 पंचाग के पांच अंग हैं -१ नक्षत्र , २ योग ,३ तिथि , ४ करण , ५ दिन  |
 इन मुहर्तों का चयन जातक की जन्म कुंडली  की सहायता से किया जा सकता  है , और जिनके के पास  जन्म कुंडली नहीं है  वे सर्व  सामान्य मुहूर्त  या प्रश्न कुंडली का उपयोग कर सकते हैं |भारतीय पंचांगों  में सर्व सामान्य मुहूर्त देये रहते हैं  जिनका उपयोग कोई भी व्यक्ति अपनी सामाजिक रीती रिवाज के अनुसार इनका चयन कर सकता है |
 के .पी  में  उद्देश्य के कारक ग्रहों के अनुसार दशा नाथ के गोचर ,सूर्य चन्द्र  एवं कारक ग्रहों से लग्न निर्धारित करके देखा जाता है | अनुकूल समय चयन  का कम से एक मिनिट तक संभव है |

के .पी. में किसी घटना विशेष के हेतु आर .पी. के चयन के लिए आवश्यक सूत्र








  दशा - किसी भी घटना के समय निर्धारण  के लिए केवल विंशोत्तरी दशा का ही  उपयोग  किया जाता है |
  गोचर - इस पद्धति में  सभी ग्रहों के गोचर का अध्ययन उनके नक्षत्र  स्वामी  और उप नक्षत्र  की स्थिति के आधार पर किया जाता है | गोचर का विचार  केवल  लग्न से ही किया जाता है | साढ़ेसाती,गुरु बल  अष्टम  चन्द्र  आदि का अनुसरण नहीं किया जाता है |
 योग - इस पद्धति में  केवल पुनर्भू योग ही होता है ,यह योग  चन्द्र और शनि के सम्बन्ध - राशी से / युति /दृष्टि  या नक्षत्र  या उप नक्षत्र  द्वारा होता है |

के .पी . में किसी भी वर्ग कुंडली नवमांश  सप्तमांश  त्रिशांश आदि  का उपयोग  नहीं किया जाता है |
 प्रश्न -कुंडली  इस पद्धति  में  १ से २४९ के बीच में से पूछे गए अंक के आधार पर प्रश्न कुंडली बनाई जाती है  और तात्कालिक ग्रहों के द्वारा घटना के लिए अनुकूलता या प्रतिकूलता  के साथ समय उसका समय निर्धारण किया जाता है|

के .पी. में  किसी घटना विशेष के  हेतु  आर .पी. के चयन के लिए आवश्यक सूत्र --
 आर पी ग्रहों में किसी भी ग्रह का सम्बन्ध यदि राहु या केतु से हो जाता है  तो उसका स्थान राहु या केतु को दिया जा सकता है |
  १) ऐसे ग्रह को प्राथमिकता  देवें  जो आर पी होने के साथ ही साथ प्रश्न से सम्बंधित प्रमुख एवं सहायक                         भावों का भी कारक भी  हो  |
  २) कोई ग्रह यदि वक्री  हो तो वह अपने वक्रत्व कल में फल नहीं दे पाता ,मार्गी होने पर जिस अंश से वक्री हुआ था उस अंश से आगे बढने  के बाद ही फल दे पाता है |
  ३) यदि किसी ग्रह का नक्षत्र  स्वामी वक्री हो तो आर पी में निरस्त करें |
  ४) यदि किसी ग्रह का उप  नक्षत्र  स्वामी वक्री होतो और वह ग्रह भावे का कारक भी हो  तो उसके मार्गी          होने के आर पी के लिया जा सकता है |
  ५) यदि किसी ग्रह ग्रह के नक्षत्र  स्वामी एवं उप नक्षत्र दोनों ही वक्री हो तो  उसे आर पी से हटायें |


दशा--  फल --  निर्णय

 के . पी. में  केवल  विमशोत्तरी  दशा का ही उपयोग  होता है  | दशा फल के निर्णय हेतु  हमें निम्नलिखित  बिन्दुओं  को ध्यान में रखना  चाहिए --
१) जन्म कुंडली  के ग्रहों के बलाबल पर दशाओं  का फल निर्भर रहता  है |
२) जन्म कुंडली  में दर्शाए  गए फल   के  विपरीत फल कोई  भी दशा नाथ  नहीं दे सकता  |
३) दशा   फल का  आकलन  जातक की  आयु , देश -काल और पात्र आदि के अनुसार किया जाना चाहिए
४) दशा नाथ  नीचे लिखे अनुसार  फल दे सकता है --
 १--अपने नक्षत्र स्वामी का फल दे सकता है |
 २--स्वयं का फल दे सकता है |
 ३--अपने नैसर्गिक कारकत्व  के अनुसार फल दे सकता है |
 ४--के पी में आधारित भावो के स्वामियों के अनुसार फल दे सकता है |

५--दशानाथ के फलों पर दृष्टि कर्त्ता  ग्रहों ,उनके कारकत्व , स्थिति एवं स्वामित्त्व  के अनुसार प्रभाव पड़ता है |
६ --जिन भावों और ग्रहों पर दशानाथ की दृष्टि है उनके फल दे सकता है |
७ --अन्तर नाथ  एवं प्रत्यन्तेर नाथ  भी अपेक्षित फल से जुड़े भाव समूहसे सम्बंधित होना चाहिए |
 उदहारण -- संतान प्राप्ति के लिए  २ , ५  और ११   वें  से विचार किया जाता है , तो दशानाथ  २ , ५ , या ११  वें भाव का कारक या सिगानिफिकैटर  होना चाहिए  और  भुक्तिनाथ भी  इन तीनो भावों का  या इन  तीनों में से किसी भी एक  या दो  भावों का कारक होना चाहिए |

८-- अनुकूल फल प्राप्ति के लिए  दशानाथ और भुक्तिनाथ  परस्पर  छठे , आठवें  या  बारहवें  भाव में  नहीं होना चाहिए |
९--यदि स्थिर राशी में  या  २,५,८,११ में ग्रह हों या मंद गति के ग्रह  हों तो उसके फल का प्रभाव अधिक  समय तक रहता है  चाहे वह अनुकूल  या प्रतिकूल  हो|  जबकि केंद्र में  या चर राशी में  शीघ्र गति  वाला ग्रह  हो तो उसका  फल अल्पकालीन  और शीघ्र  होता है |
१०--दशानाथ यदि लग्न से जुड़ा हो तो उस दशा में जातक की सक्रियता अधिक होती है |             
११-- दशाओं के शुभ  या अशुभ फल ग्रहों की कुंडली में  पर निर्भर है न की उनके नैसर्गिक स्वभाव पर 
१२-- ग्रहों के अनुकूल  गोचर |पर ही दशानाथ भुक्तिनाथ फल प्रदान कर सकते हैं |